shweta soni

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रिश्तों की बदलती तस्वीर

एक शहर के बड़े से इमारत के बड़े हालनुमा कमरे में कुछ लोग बैठे हुए हैं । सूर्य प्रकाश शर्मा उस बड़े से आधुनिक घर के मालिक स्व. रामचन्द्र शर्मा जी के बड़े सुपुत्र । उस हाल रूपी कमरे के भव्य सोफे पर बैठे हुए हैं । उनके पास ही उनके छोटे भाई चन्द्र प्रकाश शर्मा बैठे हैं । उन दोनों के साथ ही उनकी पत्नियां बड़ी नैना शर्मा और छोटी रमा शर्मा ।


सभी लोग एक जगह इकट्ठा होकर बैठ किसी के आने का इंतजार कर रहे हैं । दोनों बेटे किसी प्रकार के विचार में गंभीर रूप धरे बैठे हैं ।‌ उनके चेहरे पर दुःख और क्रोध की मिली-जुली प्रतिक्रिया है । उस घर की बड़ी बहू नैना और छोटी बहू रमा । बहुत दिनों बाद दोनों के चेहरों पर संतुष्टि और खुशी के भाव दिखाई दे रहे हैं । 

उस बड़े से कमरे में , उन सबसे बेखबर अपने आप में ही मग्न । एक कोने में जमीन पर बैठकर छोटे बच्चों के खिलौनों से खेलने में व्यस्त हैं एक पैंसठ साल की बुजुर्ग महिला । उस बड़े से घर की मालकिन शांति देवी शर्मा ...

लगभग आधे घंटे के इंतजार के बाद , उस घर में एक 32 वर्षीया युवती ने प्रवेश किया । उसके चेहरे पर परेशानी साफ देखी जा सकती थी ‌। उसने उस बड़े से कमरे में घुसते ही उसने इधर - उधर पहले देखा । 
बुजुर्ग शांति देवी को देखकर उसने अपनी आंखें बंद कर अपने इष्ट को धन्यवाद किया । और बिना किसी तरफ देखे वो , जमीन पर बैठी उस मासूम सी बुज़ुर्ग के पास गयी । 

उस युवती को देखकर वो मासूम सी बुजुर्ग के चेहरे पर मुस्कान फैल गई । 

शांति देवी - बिट्टो ...! उनकी आंखों से आंसू बहने लगे । बिट्टो , तू आ गई । इतनी देर से क्यूं आई ! मुझे तेरी बहुत याद आ रही थी ‌। बिट्टो .. शांति देवी की छोटी बेटी पूरा नाम बृंदा शर्मा । जिसे शांति देवी प्यार से बिट्टो बुलाती हैं । शांति देवी की हालत देखकर बृंदा अपने आप को सम्भाल नहीं पाती और शांति देवी के गले लगकर रोने लगती हैं । 

शांति देवी , बृंदा को चुप कराते हुए - क्या हुआ बिट्टो ! ऐसे रो क्यूं रही है । तुझे भी चोट लग गई क्या दर्द हो रहा है । तू ना वहां पर हल्दी लगा लेना फिर तेरी चोट ठीक हो जायेगी । अब रोना बंद कर अच्छे बच्चे रोते नहीं ..!

देख कल ना मेरे हाथ में भी चोट लग गई । मुझे भी दर्द हुआ पर मैं इत्तू सा रोई और अपने आप चुप भी हो गई । शांति देवी अपने कोहनी पर लगी चोट को दिखाते हुए कहती है । जिसे देख बृंदा की आंखों से आंसू बहने लगते हैं ।

बृंदा अपने आंसुओं को पोंछते हुए । अपने भाइयों की तरफ मुड़ती हुई ...
लगता हैं आप लोगों ने फैसला कर लिया है , इनको यहां से भेजने का ! 

सूर्य प्रकाश - ये हमारी मजबूरी है छोटी , इतने दिनों से इनकी छोटी - छोटी गलतियों को नजरंदाज करते आये हैं । लेकिन कल इन्होंने तो हद ही कर दी ! कल बंटी को पत्थर फेंककर मारा इन्होंने ।‌ उन्होंने नैना को बंटी को लाने का इशारा किया । 

नैना जब बंटी को लेकर कर आ रही थी । इतने देर से अपने आप में मग्न हो कर खेल रही शांति देवी अचानक भड़क उठी । और बृंदा को अपनी चोट दिखाते हुए मासूमियत से कहने लगी । बिट्टो ... इसने ही कल मुझे पत्थर फेंककर मारा था । अच्छा हुआ मैंने अपना चेहरा ढ़क लिया । वरना मेरे सिर में चोट लग जाती । ये मुझे मारकर वहां से भाग रहा था , तभी इसका पैर फिसला और पास ही वो जिसमें सुंदर सा फूल लगा है ना ! उससे टकरा कर गिर पड़ा और इसे चोट लग गई । बहुत मजा आया ...हा..हा.. शांति देवी ताली बजाकर हंसने लगी । 

सूर्य प्रकाश कुछ कहते उससे पहले बृंदा ने हाथ दिखाकर उन्हें रोक दिया और बंटी की तरफ देखते हुए ।‌ अपने घुटनों पर बैठ कर बंटी से सच पुछने लगी । पहले तो बंटी ने इधर उधर देखा और फिर सिर झुका लिया । 
बृंदा - बेटा आपको कोई कुछ नहीं कहेगा । आप बस सच बताओ ! 
बंटी - वो मैं पेड़ निशाना लगा रहा था ।‌ तो दादी बीच में आ गई और उन्हें लग गई ।‌
बृंदा अपने भाइयों की ओर मुड़ते हुए - भैया ! आपने बिना सच जानें मां को कसूरवार बना दिया । जबकि आप उनकी हालत अच्छे से जान रहे हैं । 
आपने एक बार भी मां से नहीं पूछा होगा । कि कल उनको चोट कैसे लगी । लेकिन आपको ये जरूर दिखाई दिया कि मां की वजह से बंटी को चोट लग गई ! क्यों भैया ? 
एक बार उनकी बात सुने बिना ही उन्हें दोष दे रहे हो । 

बृंदा की बात सुनकर चंद्र प्रकाश बीच में ही रह बोल पड़े - बृंदा , तुम तो मां की दिमागी हालत जानती हो । डाॅ ने उन्हें हास्पिटल में भर्ती करने को कहा है । और हम सब भी यही सोच रहे हैं इसी में सबकी भलाई है । 
बृंदा ताली बजाते हुए - वाह ! भैया बहुत खूब ! मुझे आपसे यही उम्मीद थी । चन्द्र प्रकाश कुछ कहने वाले होते हैं , जिसे बृंदा हाथ के इशारे से चुप करा देती है । 

बृंदा - भाई मुझे अच्छे से पता है कि डॉ ने क्या कहा था । आप भूल गए हैं तो मैं आपको याद दिला दूं , कि डॉ ने कहा था कि मां को एक ऐसी बिमारी हुई है जिसमें वो अपने आपको छोटे बच्चों जैसा समझने लग रही है । और वक्त के साथ उनके साथ ये समस्या होती रहेंगी ।

वो अपने आप को एक 6 साल की बच्ची समझती है , उन्हीं की तरह व्यवहार करती है और जैसे बंटी और प्रियांशु शरारत करते हैं । वो भी ये सब करती हैं । इसमें उनकी क्या गलती है भाई ! डॉ ने साफ - साफ कहा था कि पूरी दुनिया में किसी एक या दो लोगों में इस तरह की परेशानी होती है । हमें बस उनका ख्याल रखना है । जैसे आप लोग बंटी और प्रियांशु का रखते हो । बिल्कुल वैसा ही ! 

अबकी बार नैना भाभी ने बृंदा की बात को बीच में ही काटते हुए कहा - बृंदा , तुम तो यहां रहती नहीं हो । तुम्हें क्या‌ पता कि मांजी कितनी परेशानी पैदा कर देती हैं , हमारे लिए । राह चलते लोगों को कंकड़ पत्थर से मारना , कभी घर के खिड़कियों के शीशे को फोड़ देना । अपने खाने को कुत्तों को खिला देंना और भी कितनी ही मुश्किलें बढ़ाती हैं । अब तो पड़ोसी भी उनकी शिकायत लेकर रोज - रोज आने लगे हैं ।  

बृंदा - भाभी , आप जितनी भी शिकायत मां की बता रही हैं ना ! कुछ सालों पहले ठीक ऐसी ही शरारत आपके पति ने भी की है। मां के पास अक्सर दोनों भाइयों की शिकायत आती रहती थी । लेकिन लोगों के कहने के डर से और अपनी जिम्मेदारियों से उन्होंने कभी मुंह नहीं मोड़ा । चाहती तो वो आप दोनों को किसी हास्टल में डालकर आराम से अपनी जिंदगी जी सकती थी । अपने सपने पूरे कर सकती थी लेकिन उन्होंने ऐसा कुछ नहीं किया । अब जबकि आपकी जिम्मेदारी है मां कि देखभाल करने का तो आप उन्हें इलाज के बहाने वृद्धाश्रम में छोड़ना चाहते हैं । 

सूर्य प्रकाश - ये तुमसे किसने कहा ! हम तो बस मां को उनके हम उम्र लोगों के बीच रखना चाहते हैं ।‌

बृंदा - क्या ये आपका आखरी फैसला है ? 

सूर्य प्रकाश - हां हम सबने सोचा लिया है , कि अब मां का हमारे साथ रहना ठीक नहीं होगा । इसलिए कल ही मैं मां को छोड़ आऊंगा । 

बृंदा सूनी आंखों से शांति देवी को देखती हुई ...
इसकी जरूरत नहीं पड़ेगी भैया ! आज ही मां को मैं अपने साथ ले जाऊंगी । मुझे और सौरभ को भी मां के साथ रहने का मौका मिलेगा ....।।
मैं मां के रुम से उनका सारा सामान समेट लेती हूं और सौरभ को फोन कर के कुछ घंटों के बाद बुला रही हूं । 

ये कह कर बृंदा अपनी मां को लेकर उनके कमरे में जाकर ।‌ उन्हें पलंग पर बिठाकर उनकी आलमारी खोल कर उनका सामान पैक करने लगी । इन सबसे बेखबर शांति देवी अपने खिलोनों से खेलने में मग्न है । बैग में सामान जमाने लगती हैं । सामान निकालते हुए उसके हाथ से एक बहुत पुरानी डायरी हाथ से छुटकर गिर पड़ती हैं । बृंदा झुककर उस पुरानी डायरी को उठाती हैं । डायरी को खोलकर बृंदा पन्ने पलटने लगी । डायरी के पहले पन्ने पर ही लिखा था । शांति .....
वृंदा अपनी मां की लिखी हुई डायरी पढ़ने लगती है । अब आगे ...बृंदा अपनी मां का सामान एक बैग में पैक कर रही होती हैं । तभी आलमारी से कुछ सामान निकालते वक्त एक डायरी आलमारी से निकलकर नीचे गिर पड़ती हैं । बृंदा उस डायरी को उठाकर उत्सुकतावश उस डायरी के पन्ने पलटने लगती हैं । जहां पहले पन्ने पर ही एक नाम लिखा था " शांति " । बृंदा अपनी मां का नाम देखकर डायरी को संभालकर अपने बड़े से पर्स के हवाले कर देती हैं । 
अपनी मां का सब सामान रखने के बाद अपनी मां के साथ घर के बाहर आती है । जहां बृंदा के पति अपनी कार में उनका इंतजार कर रहे होते हैं । घर से जाते हुए शांति देवी मासूमियत से अपनी बेटी से पूछती हैं ! हम कहां जा रहे हैं बृंदा ! 
बृंदा अपनी मां के पास आकर प्यार से उन्हें देखते हुए कहती हैं - मां आज से मैं , सौरभ और छोटी हम सब आपके साथ रहना चाहते हैं । इसलिए आपको मैं आपके नये घर में ले जा रही हूं । सौरभ बृंदा के हाथ से बैग लेकर गाड़ी की डिक्की में जमा कर रहे थे । घर से बाहर निकलने के बाद बृंदा एक बार पलट कर अपने बाऊजी और मां के घर को एक आखिरी बार देखा और अपनी मां को लेकर कार में बैठ गई । 
सौरभ ने एक बार बृंदा कि ओर देखा और कहा - बृंदा , चलें ।
बृंदा ने सर हिला कर मंजूरी दी लेकिन कहा कुछ नहीं । आज उसकी आंखें भरी हुई थी और मन में बस ईश्वर से बस यही शिकायत कर रही थी कि , उनके बाऊजी को हमसे इतनी जल्दी क्यों छिन लिया । बाऊजी के बिना मां की हालत उनके बेटे और बहूओं ने दयनीय कर रखी थी । बृंदा सारे रास्ते अपनी मां के स्थिति के बारे में सोचते हुए उसे ये भी पता नहीं चला कि कब घर आ गया । दीनू को गेट खोलते देख । वो अपने ख्यालों की दुनिया से बाहर निकल आई । 

सौरभ बृंदा और शांति देवी को घर छोड़कर अपने आफिस के किसी जरूरी काम से निकल गये । 
बृंदा , शांति देवी का हाथ पकड़कर पास ही रखे सोफे पर बैठाकर उनके पास बैठ गई । 
शांति देवी पूरे घर को आश्चर्य से देख रही थी ।
"मां , आपको अपना नया घर कैसा लगा " बृंदा ने पूछा ! 

" बहुत सुंदर है , लेकिन इस नये घर में मेरा कमरा कौन सा है ! " शांति देवी ने मासुमियत से पूछा ! 

" आपको आपका कमरा देखना है ? चलिए मैं आपको आपका कमरा दिखाती हूं "। बृंदा , शांति देवी का हाथ थामे एक बड़े से कमरे में दाखिल होती है । " मां , ये कमरा आपको कैसा लगा " ? 
शांति देवी - बहुत सुंदर है बिट्टो । ये घर भी सुंदर है और मेरा कमरा भी । " शांति देवी ने छोटे बच्चे की तरह चहकर कहा " 
" तो चलिए आप यहां आराम कीजिए मैं आपका जमा देती हूं "। बृंदा ने शांति देवी को पलंग पर बिठाते हुए कहा ! बिट्टो , ये काम तू बाद में कर लेना । पहले मेरे लिए कुछ खाने को ला । मुझे बहुत भूख लगी है । 
" अरे मैं भी कितनी बेवकूफ हूं , एक बार भी नहीं सोचा कि इतनी देर हो रही है । आपको भूख लगी होगी " । बृंदा अपने आप से कहने लगती है । 
मां , आप यहां आराम करो मैं जल्दी से आपके लिए कुछ गरमा गरम बना कर लाती हूं । 
बृंदा , शांति देवी को उनके कमरे में छोड़कर उनकी पसंद का खाना बनाने के लिए रसोई घर की तरफ चली जाती है । 
बृंदा के जाने के बाद शांति देवी अपने कमरे को ध्यान से देखने लगती है । देखते-देखते उनकी नजर एक खिलौने पर पड़ी । एक सुंदर सी गुड़िया जिसके लंबे , काले बाल थे और उसने दुल्हन वाले कपड़े पहन रखें थे । बृंदा के खाना बना कर लाते तक शांति देवी उस गुड़िया से खेलने लगती हैं । बृंदा एक प्लेट में परांठे और आलू की चटपटी सब्जी बनाकर लाती है । शांति देवी के कमरे के अंदर आते हुए , अपनी मां को गुड़िया के साथ खेलता देखकर उसकी आंखें भीग जाती हैं । किसी तरह अपने आप को नियंत्रित करके बृंदा , शांति देवी को पुकारती हैं ...
" मां देखिए तो मैं आपके लिए क्या लायी हूं , गरमागरम परांठे और आलू की सब्जी चलिए आइये और खा लीजिए । वरना खाना ठंडा हो जायेगा ‌। " बृंदा की बातों का शांति देवी पर कुछ ज्यादा फर्क नहीं पड़ा । वो तो अब भी खेलने में मग्न थी । 
  " मां आप बाद में खेल लीजिएगा पहले खाना तो खा लीजिए "। बृंदा ने मनुहार करते हुए कहा ! और जब देखा कि शांति देवी उसकी बातें नहीं सुन नहीं रही है । तो बृंदा खुद उन्हें अपने हाथों से खिलाने लगी । खाना‌ खाते हुए शांति देवी बहुत नखरे करती और खाने की ओर से अपना मुंह घुमा लेती । लेकिन बृंदा भी उन्हें मनाकर और कहानियां बना बनाकर शांति देवी को खिलाने लगती । उसके खाना खिलाते समय ही सौरभ घर में घुसते ही ये प्यारा सा दृश्य देखकर वहीं खड़े हो जाते हैं । जहां एक बेटी मां बन कर अपनी मां जिसकी दिमागी हालत एक बच्चे की तरह हो गई है , उसे खाना खिला रही है । खाना खिलाकर बृंदा कमरे से बाहर आ जाती है । जहां वो सौरभ को खुद को देखता पाती हैं । 
बृंदा - क्या देख रहे हो ! 
सौरभ मुस्कुराते हुए - एक बेटी को अपनी मां की मां बनते देख रहा हूं । 
बृंदा - आपको पता है आप एक बहुत अच्छे इंसान हैं और साथ ही साथ एक अच्छे पति भी । 
" अरे ये तो मुझे पता ही नहीं था " सौरभ हंसते हुए कहते हैं । 
बृंदा मुस्कुराते हुए - आप हाथ मुंह धोकर आइये तब तक मैं खाना लगाती हूं । 
थोड़ी देर बाद बृंदा और सौरभ खाना खाते हुए ।
बृंदा - सुनिए , कल धृति घर आ रही है । उसने अगर मां के बारे में पूछा तो क्या कहूंगी । 
सौरभ , बृंदा का हाथ थामकर - तुम धृति की फ़िक्र बिल्कुल मत करो । उसे मैं समझा दूंगा वो समझ जायेगी । 
बृंदा रसोई का काम समेट कर शांति देवी के कमरे में जाती है । जहां शांति देवी थककर अपने पलंग पर सो चुकी होती हैं । बृंदा , शांति देवी को कंबल ओढ़ा कर धीरे-धीरे उनका सामान जमाने लगती है । सामान जमा कर धीरे से रूम का दरवाजा बंद कर अपने कमरे में आकर लेटने ही वाली होती है , कि उसे सुबह अपनी मां की मिली डायरी की याद आ जाती है । बिना समय गंवाए वो अपने पर्स को खोलती है , जिसमें ‌उसे वही पुरानी डायरी मिलती है । बृंदा डायरी को पढ़ने से अपने आप को रोक नहीं पाती और उसके पन्ने पलटने लगती है । जिसके पहले पन्ने पर लिखा था " मैं शांति " ...
७ - ५ - १९ ७७ दिन रविवार ... " मैं शांति पूरा नाम शांतिप्रिया शर्मा " मैं मेरे मां - बाबा की इकलौती संतान हूं । ना तो मेरे भाई है और ना ही बहन ! मैं अपने घर में अकेली बच्ची हूं । मेरे सभी सहेलियों के भाई और बहन है । लेकिन मेरे नहीं , सभी अपने भाई - बहनों के साथ बहुत खेलते हैं । लेकिन मैं नहीं खेल सकती । क्योंकि मैं अकेली हूं ना ! मां और बाबा मेरे साथ खेलते नहीं है , क्योंकि मां को घर के साथ - साथ बाहर के भी बहुत काम होते हैं और बाबा तो सुबह से ही अपने दुकान चले जाते हैं । लेकिन हां मेरी एक दोस्त जिसके बारे में मैं बताना भूल गई " सोनी " मेरी सबसे अच्छी अच्छी दोस्त । वो कोई हमारी तरह इंसान नहीं वो इंसानों से भी वफादार हैं वो हमारी गाय है । जब बाबा उसे पहली बार लाये थे तभी से मैंने उसका नाम रखा है " सोनी " .... ।
अच्छा डायरी अब खाना खाने जा रही हूं मां बुला रही है , कल फिर तुमसे मिलूंगी । शुभ रात्रि …

वृंदा अपनी मां की लिखी हुई डायरी पढ़ने लगती है । अब आगे ...

दिन सोमवार ...

पता है डायरी ! जब से सोनी हमारे घर आई है , घर में रौनक हो गई है । मैं दिन भर सोनी के साथ ही खेलती हूं । जब मां - बाबा घर पर नहीं होते मैं सोनी का ध्यान रखती हूं । कभी - कभी खाने में नखरें करती हैं । लेकिन मैं जब रूठती हूं ना , तो झट से मान जाती है और घास खाने लगती है । अच्छा मां बुला रही है , मुझे स्कूल जाने में देर हो जायेगी । बाकि बातें बाद में ....
८ -५ - ७७ दिन सोमवार 

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वर्तमान में 
बृंदा डायरी का अगला पलटने ही वाली होती है कि , किसी ने उसके कंधे पर हाथ रखा । बृंदा ने देखा तो मां उसके कंधे पर हाथ रखे खड़ी थी । 
बृंदा - मां आप ! आपको नींद नहीं आ रही क्या ? 

शांति देवी - बिट्टो , मुझे नींद तो आ रही है । लेकिन अकेले सोने में मुझे डर लग रहा है । मैं आज तुम्हारे साथ सो जाऊं ! 
बृंदा ने सुना तो उसकी आंखें डबडबा गई । उसे याद आया जब वो छोटी थी और अंधेरे में सोने में उसे डर लगता था । जब भी डर कर बृंदा अपनी मां के पास जाती । शांति देवी उसे प्यार से चुमते हुए अपने आंचल में छुपा लेती थी और अपनी गोद में सिर रखकर हल्के हाथों से थपथपाते हुए बृंदा को सुला देती थी । बृंदा अपनी मां के पास निश्चिंत होकर सो जाया करती थी । 

बृंदा अपने ख्यालों से बाहर आई और उसने शांति देवी से कहा ! 
बृंदा - मां , आप मेरे पास आइये ! 
बृंदा , शांति देवी का सिर अपने गोद में रखकर । उनके सिर पर हल्के से थपथपाते हुए अपनी मां की लोरी गा कर सुलाने लगी । 

" सो जा मेरी रानी बिटिया , 
तू ... सो जाना ...
दूर गगन में चांद का घर है ,
सपने में तू ...वहां जाना ...
सो जा मेरी रानी बिटिया , 
तू सो जाना ...
तारों की छांव में , 
ठुमक - ठुमक तू खेल खिलाना , 
सो जा मेरी रानी बिटिया , तू सो जा ना ...

थोड़ी देर बाद शांति देवी बृंदा की गोद में सो गई । बृंदा ने उन्हें सुलाकर कर कंबल ओढ़ाकर कमरें से बाहर आ गई । बृंदा को नींद नहीं आ रही थी , इसलिए उसने डायरी उठाई और पन्ने पलटने लगी । 

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८ - ५ - ७७ 
दिन - सोमवार 

आज बहुत गुस्सा आ रहा है । किसी और पर नहीं खुद पर , आज स्कूल में ऐसा ही कुछ हुआ । मीना मेरी सहपाठी उसने आज फिर सबके सामने मेरा मज़ाक उड़ाया । मुझे बुद्धु और ना जाने क्या - क्या कहने लगी । मैंने ऐसा भी कुछ नहीं किया । किसी की मदद करना बुरी बात है तो वो मैं हमेशा करूंगी । अब तो उससे बात ही नहीं करूंगी मैं ! अच्छा अब मैं जा रही हूं । आज मैं और सोनी आम के बगीचे में जा रहें हैं । बाबा ने कहा था बगीचे की रखवाली करनी है । इस साल बहुत अच्छे आम हुए हैं और वो भी अलग-अलग किस्म के आम हुए हैं ,अब इतने सारे आम हुए है , तो आम चोर भी आयेंगे ही उनकी खातिरदारी की भी तैयारी करनी है । अपनी गुलेल और कंचे तैयार करनी हैं । दीनू काका को भी बुलाया है वो भी आते ही होंगे । बहुत सारे काम है , अच्छा अब चलती हूं डायरी बाद में मिलूंगी ....
      
                                                            शांति 

बृंदा अपनी मां कि डायरी पढ़ते हुए सो गईं उसके चेहरे पर एक मुस्कान थी । मां ने कभी अपने बचपन की बातें किसी को भी नहीं बताया था । शांति देवी की डायरी पढ़ते हुए वो अपनी मां के बचपन को जान रही थी ।  

" लेकिन यादें हमेशा खुशी की ही हो जरूरी तो नहीं ! सुख अपने साथ दुःख भी लाता है और दुःख में ही अपनों की पहचान होती हैं । बृंदा भी अपने मां के अतीत से जल्द ही रूबरू होने जा रही थी ।" 

सुबह चिड़ियों की चहचहाहटों से बृंदा की नींद खुली । उसने उठकर सबसे पहले शांति देवी के कमरें में जाकर देखा । जहां शांति देवी अभी भी सो रही थी । बृंदा , शांति देवी के पास उन्हें एक बार देखकर अपने कामों में लग गई । नहाना , सबके लिए नाश्ता बनाना घर की साफ-सफाई वैगरह । काम खत्म करके बृंदा शांति देवी के कमरें में गई । जहां वह उठकर एक खिलौने से खेलने में व्यस्त थी । 
बृंदा अपनी मां को देखकर मुस्कुराते हुए - मां , आप उठ गई ! और ये आप कर क्या रही हैं ! 
शांति देवी अपनी गुड़िया को कपड़े पहनाने में व्यस्त थी । 
शांति देवी व्यस्तता के साथ मासुमियत से बोली - देख ना बिट्टो , मुझे मेरी गुड़िया को कपड़े पहनाने है । मैं पहना भी रही हूं , लेकिन ये कपड़े गुड़िया को हो क्यों नहीं रहें ! 
बृंदा ने सुना तो उसे अपना बचपन याद आने लगा । वो भी तो ऐसा ही करती थी । फिर मां उसे कितने प्यार से पुचकारते हुए उसकी गुड़िया को कपड़े पहनाती थी । 

आज बृंदा अपना बचपन फिर से जी रही थी । बस फर्क इतना है कि बच्चे के रूप में उसकी मां शांति देवी है और बृंदा अपनी मां की जगह पर है । किरदार वहीं है बस कलाकार बदल गये है । 


समाप्त


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13 Comments

Supriya Pathak

18-Sep-2022 12:08 AM

Acha likha hai aapne rachna 👍🌺🙏

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Achha likha hai 💐

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Pratikhya Priyadarshini

16-Sep-2022 04:43 PM

Achha likha hai 💐

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